बांदा। प्रदेश सरकार भले ही अपनी पुलिस की
पीठ ठोंक कर वाहवाही बटोर रही हो पर डकैत उसे अपने भरोसे लायक नहीं बताते।
दस्यु राधे का कहना है कि मध्यप्रदेश की पुलिस जो कहती है करती है। लेकिन
अपने यहां की पुलिस बुलाकर गोली मारने में ही पारंगत है।
आतंक का पर्याय रहे दस्यु सम्राट की पदवी लिये शिवकुमार उर्फ ददुआ के
दाहिने हाथ राधे ने बताया कि बदमाशों के मध्यप्रदेश पुलिस के सामने समर्पण
करने के कई फायदे हैं। बताया कि एमपी पुलिस आत्मसमर्पण के बाद न तो बदमाश
की जान लेती न ही प्रताड़ित करती है। लेकिन उत्तर-प्रदेश की पुलिस बदमाशों
को सिर्फ पकड़कर मारने में ही विश्वास रखती है। राधे का कहना है कि यदि
पुलिस उचित समय से कार्रवाई करे तो अपराध पूरी तरह से खत्म हो सकते हैं।
अपराधियों के पनपने का कारण पुलिस की निष्क्रियता है। क्योंकि गांव का
आदमी पढ़ा-लिखा न होने के कारण छोटी से छोटी घटना से आक्रोशित होकर जंगल
का रूख अख्तियार कर लेता है।
दस्यु ददुआ के आपराधिक जीवन में सबसे चर्चित रामू पुरवा नरसंहार के
बारे में उसने बताया कि इसमें भइया (ददुआ) का कोई हाथ नहीं था। ग्रामीणों
द्वारा उसके चाचा को पुलिस से पकड़वाये जाने पर उसने अपने चचेरे भाई
सीताराम को यह कहकर गांव भेजा था कि समझाबुझाकर लौट आना। लेकिन हनुमान व
सीताराम ने आक्रोश में आकर नरसंहार को अंजाम दिया। जिसमें कई बेगुनाहों की
जान चली गयी।
रामूपुरवा हत्याकांड में नामजद अभियुक्त रहे राधे ने न्यायालय से इस
मामले में छूटने के बाद बताया कि वह इस घटना में नहीं था। बजरंगबली पर उसे
विश्वास था कि वह इस मामले से बरी हो जायेगा। ईश्वर ने उसका विश्वास कायम
रखा। राधे ने कहा कि तब (जंगल) और अब की जिंदगी में धरती-आसमान का अंतर
है। जो काम उसने जंगल में रहकर किये आज उनका पछतावा हो रहा है। हर कोई
अपने बच्चों के साथ रहना चाहता है। मेरे कहने पर ही दीपक हाजिर हुआ। सुंदर
को भी कहा है कि समाज में रहकर अच्छी जिंदगी जिये।