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4:42 PM
अंग्रेजों को मिले थे रानी के बक्से में क्रांति के कई रहस्य
कालपी-उरई (जालौन)। मई 1858 में जबर्दस्त
जंग के बाद कालपी पर जब ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना का कब्जा हो गया तब
अंग्रेजों ने बड़ी बेरहमी से उन लोगों को सजा दी जिन्होंने क्रांतिकारियों
की मदद की थी। इसी दौरान दो जून 1858 को कालपी की व्यवस्था संभाल रहे ईस्ट
इंडिया कंपनी के सैन्य अधिकारी जीएफ एडमोस्टोन ने आगरा में अपने
उच्चाधिकारी ई.ए. रीड को तार संदेश भेजकर बताया था कि यहां झांसी की रानी
का एक बक्सा मिला है जिसमें अति महत्वपूर्ण पत्र है। देश के लिये उक्त
बक्सा व पत्र ऐतिहासिक धरोहर थी लेकिन आजादी के बाद भी यह पता लगाने की
कोशिश आज तक नहीं की गई कि कंपनी के अधिकारियों ने महत्वपूर्ण बताये गये
उन पत्रों को कहां सुरक्षित रखा और उनका क्या इस्तेमाल किया।
पहले स्वाधीनता संग्राम को लेकर कई तथ्य आजादी के बाद देश की बागडोर
संभालने वालों की अनदेखी की वजह से दफन हो गये। जबकि देश की आने वाली
पीढि़यों के लिये इस संग्राम में भाग लेने वाले देशभक्तों की गाथाएं
अत्यंत प्रेरक है। विडम्बना यह है कि कई ऐसे स्थानीय लोगों के नाम इतिहास
में गुमनाम रह गये जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई व क्रांतिकारियों की मदद की
थी और क्रांतिकारियों की पराजय के बाद उनमें से कइयों को फांसी पर लटका
दिया गया। तमाम की तो संपत्ति जब्त कर उन्हे बेघर बार होने को मजबूर कर
दिया गया और उनके स्थान पर अंग्रेजों ने कंपनी भक्तों को यह जायदादें
तकसीम कर दीं। आज भी यह लोग जमीन जायदाद वाले होने की वजह से महिमा मंडित
है जबकि क्रांतिकारियों की मदद करने वाले परिवार अपना धन, वैभव खोकर
बर्बाद हुये तो आज तक बहाल नहीं हो पाये। अनुमान है कि झांसी के रानी के
बक्से से मिले पत्रों में इन मददगारों का हवाला था। यदि यह पत्र ब्रिटेन
में किसी संग्रहालय में सुरक्षित हों तो उनके मिलने पर ऐसे लोगों के
वर्तमान उत्तराधिकारियों को पेंशन, सम्मान देकर देश उनके प्रति अपनी
कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर पा सकता है। शोध छात्र कुलदीप शर्मा का कहना
है कि रानी लक्ष्मीबाई की स्मृति से जुड़ी हर चीज आज भी यहां के लोगों को
रोमांचित करती है। इस कारण उनका उस समय बरामद किया गया बक्सा हासिल करने
पर यहां के लोग अपने को अत्यंत कृतकृत्य अनुभव करेगे। इतिहासकार डा. डीके
सिंह ने बताया कि अभिलेखागार लखनऊ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से
संबंधित टेलीग्रामों की हस्तलिखित मूलप्रतियों का बड़ा संग्रह है और इनमें
कई का संबंध जालौन जनपद में प्रथम स्वाधीनता संघर्ष के दौरान हुई घटनाओं
से है।