अपना बुंदेलखंड डॉट कॉम परिवार के सदस्यों को "रामनवमी" की शुभकामनायें। राम जिन्होंने बुंदेलखंड के चित्रकूट क्षेत्र में संकल्प लिया कि "निश्चर हीन महि करूँ , भुज उठाहि प्रण (Read More)
Main » 2010»February»15 » सरकार और योजनाओं से दूर अल्पसंख्यकों की एक बस्ती
1:00 PM
सरकार और योजनाओं से दूर अल्पसंख्यकों की एक बस्ती
उरई (जालौन)। अजनारी गांव में एक बस्ती ऐसी भी है जहां पर योजनाएं भी
इसलिए नहीं पहुंच रही है क्योंकि वहां रास्ता ही नहीं है। गरीबी से तंगहाल
अल्पसंख्यकों की इस बस्ती में आज तक सरकार के कारिंदे भी नहीं जा सके। इनकी
भी क्या कहे जब गांव के ही प्रधानजी भी वहां नहीं जा पाते, जिस कारण मलिन
बस्ती से भी बुरी हालत यहां पर नजर आती है जो योजनाओं की मलिनता को उजागर
करती है।
गांवों का विकास, अल्पसंख्यकों का कल्याण हर सरकार अपनी टॉप प्राअर्टी
में बताते हुए नहीं थकती। हर दल उनके वोटों को चाहता है परंतु जिस तरह की
हालत जिला मुख्यालय से मात्र 3 किलोमीटर बसे इस गांव में दिखती है उससे यह
दावे थोथे नजर आते है। मुस्लिमों में नट बिरादरी के लोग यहां पर 50 घरों
में रहते है। आज तक यह घर पक्के नहीं हो पाये, हो भी कैसें जब इनमें रहने
वालों के लिए खाने तक के लाले पड़े रहते है। यही कारण है कोई मजदूरी करता है
तो कोई रिक्शा चलाकर गुजारा करता है। मेहनतकश इन लोगों को हर रोज अपने
घरों में जाने के लिए रास्ते नहीं बल्कि दूसरे का घर ही इस्तेमाल करना पड़ता
है। कारण साफ है कि रास्ते में खड़ंजा है नहीं और पानी का निकास न होने से
हमेशा कीचड़ बना रहता है इसलिए 'साथी हाथ बढ़ाना' की तर्ज पर यह लोग दूसरे
घर से होकर यहां से निकल पाते है। दुर्गध इतनी उठती है कि अपने कार्यालयों
में गुलदस्ता रखकर बैठने वाले अधिकारी यहां शायद एक मिनट भी न रुक पायें।
इसके बावजूद यहां पर आज तक कोई भी लाभान्वित करने वाली योजना का अक्स नहीं
दिखता। जर्जर काया वाली 80 साल की खातून के सामने फांकाकशी के हालात है
लेकिन उनको वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलती। सुल्तान रिक्शा चलाता है और दिन
भर की कमाई से केवल इतना हो पाता है कि वह अपना और अपने परिवार का पेट
बमुश्किल भर सके। अगर कभी बीमार हुआ तो खुदा ही मालिक। यही कारण है कि मौसम
क्या है, उसको इससे कोई मतलब नहीं है। परिवार का पेट भरने के लिए हर सूरत
में रिक्शा चलाना है। मोहम्मद हों या फिर छोटे खां, उन्हे यह भी नहीं पता
कि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग बना है। यही नहीं अपनी गरीबी को दूर करने के
लिए वे भी गांव में काम मांग सकते है, इसकी जानकारी उनको अपने साथ हो रहे
अघोषित परायेपन की वजह से नहीं हो सकी है। खास बात यह है कि अपने लोगों का
हित करने का दावा करने वाले मुस्लिम नेता भी यहां आज तक नहीं गये है, जिस
कारण उनके लिए कोई पैरवी भी नहीं हो सकी। गांव के प्रधान से यह लोग अपनी
बात कहे कैसे जब यहां के प्रधान दूवाराम प्रजापति उरई में रहते है और
पंचायतमित्र अशोक भी उन्हीं की तर्ज पर यहीं पर निवास करता है। ऐसे में यह
लोग चाहकर भी उनसे बात नहीं कह पाते। यही नहीं प्रधानजी उनकी इस बस्ती में
आज तक पहुंचे ही नहीं तो सरकारी अधिकारी जो गांव में विभिन्न पंचायतों और
काम देखने के लिए इस गांव में पहुंचे जरूर परंतु इस बस्ती तक उनके भी चरण
नहीं पड़ सके। अगर ऐसा होता तो इनके लिए बीपीएल कार्ड तो उपलब्ध हो ही जाते
लेकिन गरीब होते हुए भी इस श्रेणी में गिने नहीं जाते।