बांदा। सात साल से कम सश्रम कारावास की सजा पाने वाले कैदियों को मंडल
कारागार में रहकर खेती व बागवानी के साथ पाकशाला और आटा चक्की में मशक्कत
करनी पड़ती है। जिसके एवज में सजायाफ्ता कैदियों को दस रुपये प्रतिदिन के
हिसाब से मेहनताना भी दिया जाता है।
मंडल कारागार में मंगलवार को 1074 कैदी बंद थे। इनमें 834 कैदियों का
विभिन्न मामलों पर अदालतों मे ट्रायल चल रहा है। जबकि 240 कैदी विभिन्न तरह
के अपराधों में दोष सिद्ध होने की वजह से सश्रम कारावास की सजा काट रहे
हैं। इनमें कुछ साल से लेकर अधिकतम सात साल तक की सजा पाये कैदी शामिल हैं।
इन 240 कैदियों को सश्रम कारावास की सजा के हिसाब से जेल परिसर में मौजूद
4.10 एकड़ जमीन में खेती का कार्य कराया जाता है। इसके अलावा इनसे पाकशाला,
सफाई व्यवस्था व आटा चक्की में श्रम लिया जाता है। इन सजायाफ्ता बंदियों के
मेहनत के बदले प्रतिदिन 10 रुपये मेहनताना भी मिलता है। इस राशि में 15
प्रतिशत प्रतिकर की कटौती की जाती है। यह राशि उन लोगों को दी जाती है जिसे
इन सजायाफ्ता कैदियों ने प्रताड़ित किया है। लेकिन खास बात यह है कि अभी तक
इन कैदियों के मेहनताने में से काटी गयी रकम किसी पीड़ित परिवार तक नहीं
पहुंच सकी। इसके पीछे का कारण अधिकारी इस कार्रवाई की जटिल प्रक्रिया बता
रहे हैं।
मंडल कारागार के अधीक्षक एके राय का कहना है कि सश्रम सजायाफ्ता
कैदियों से यहां ज्यादा कुछ काम लेने की व्यवस्था नहीं है। शासनादेश के
अनुसार सौ बंदियों पर तीन सजायाफ्ता कैदियों को लगाया जा सकता है। उस लिहाज
से हम सिर्फ 30 से 35 कैदियों से ही काम ले सकते हैं। श्री राय ने कहा कि
सिंगल वाल की जेल होने की वजह से यहां अधिक सजा पाये बंदियों को नहीं रखा
जाता। सात साल से ऊपर की सजायाफ्ता कैदियों को नैनी भेज दिया जाता है लेकिन
अभी वहां भी बंदियों की अधिक संख्या होने की वजह से बंदियों को भेजने पर
रोक लगी है। उन्होंने बताया कि वृद्ध कैदियों से मेहनत वाले काम नहीं लिये
जाते।