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8:29 PM
अन्तर्जातीय विवाह सपना नहीं अब बन रहे हकीकत
कुलपहाड़ (महोबा)। वक्त बदल रहा है। बदलते
वक्त के साथ बदल रही आबोहवा के असर से गांव कस्बे भी अछूते नहीं है।
अन्तर्जातीय विवाह जिस पर चर्चा करते ही लोग मरने मारने को तैयार हो जाते
थे अब स्वीकार्य होने लगे है।
नगर के सिविल लाइन्स में क्षेत्र में ऐसे विवाह खामोशी से दस्तक दे
रहे है। पांच वर्षाें के अंदर इस तरह के आधा दर्जन विवाह हो चुके है। जिन
पर घर परिवार व समाज ने भी मुहर लगा दी है। नगर व क्षेत्र में उडीसा,
छत्तीसगढ़ व मप्र से खरीदकर लायी लड़कियों से विवाह रचाना भले मजबूरी का
सौदा रहा हो लेकिन अब बंदिशें व बंधन भी दरकते जा रहे है। पढ़ लिख सभ्य
परिवारों के बच्चे जो उच्च शिक्षा के लिए बड़े शहरों को गए पढ़ाई के
साथ-साथ प्रेम भी कर बैठे। दोस्ती की यही शुरूआत बाद में शादी के बंधन तक
जा पहुंची। बच्चों की खुशियों की खातिर उनके अभिभावक ने भी न केवल धूम धाम
से शादियां की बल्कि लोगों ने शादी की दावतों में जमकर पकवान व्यंजन खाकर
वर वधू को आशीषें दी। शुरूआत में बदलाव के नाम पर वेडिंग कार्ड में जाति
का हवाला नहीं दिया जाता था। लेकिन अब यह झिझक भी खत्म होती जा रही है। 20
जनवरी को हुए एक विवाह में वर एवं वधू पक्ष के सर नेम का वैडिंग कार्ड में
खुलकर उल्लेख किया गया। बल्कि शादी में दोनों पक्षों ने खुले मन से शिरकत
भी की। शिक्षाविद् दीपेंद्र दीक्षित के अनुसार समाज में आ रहे इस बदलाव के
पीछे सूचना क्रांति का विस्फोट, टेलीविजन चैनलों व धारावाहिकों में आ रहा
खुलापन एवं नई पीढ़ी द्वारा अपने फैसले स्वयं लेना ऐसे कारण है। जिनकी
अनदेखी नहीं की जा सकती। जिस तरह से खामोश क्रांति समाज में पैर पसार रही
है। भले अभी वह शैशवावस्था में हो लेकिन इसकी गूंज आने वाले वर्षाें में
भी रुकने वाली नहीं है।