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8:23 PM
ग्यान्गा की तरह विलुप्त न हो जाये कबीरी गायकी
हमीरपुर (उत्तर प्रदेश)। बुंदेलखंड के
ग्रामीण जीवन को स्पंदित करनी वाली लोक संस्कृति आज भी गांव के किसान और
मजदूरों के बीच जिंदा है। इनका संरक्षण न होने से और प्रोत्साहन न मिलने
से अब यह कला वाद्य यंत्र और नृत्य विलुप्त होते जा रहे हैं। उदाहरण के
लिए एक लोक वाद्ययंत्र है-ग्यान्गा । पानी पीने वाले घड़े को चमड़े से मढ़कर
उसमें छेद करते थे, मोरपंख को उस छेद में गांठ लगाकर डाल देते थे, फिर पैर
से दबाकर लंबे पांव फैलाकर मोर पंख को खींचकर इसे बजाया जाता था, जिससे
अजीब सी धुन निकली थी।इसे बजाकर जंगल में खेतों में किसान गाते थे।
क्योंकि इसकी आवाज को सुनकर जंगली जानवर जो खेतों को नुकसान पहुंचाते हैं,
भाग जाते थे। तेंदुआ भी इसकी आवाज को सुनकर दूर बैठा रहता था। इस प्रकार
खेत की रखवाली और लोकरंजन दोनों होते थे।
ढोलकर, मजीरा और तंबूरा के साथ शास्त्रीय और लोक ध्वनों को मिलाकर
कबीरी गायन किया जाता है, जिसमें ग्रामीण, मजदूर व किसान रात भर जागकर
निर्गुण गायन में मस्त होकर नाचते हैं। इसका ढोलक वादन भी बहुत कठिन है।
जिसे गांव का आदमी ही बजा पाता है। क्योंकि शास्त्रीय गायन विधा में तीन
ताल व आठ मात्रा का वादन होता है। ग्रामीण वादन, जिसे बेल और नारदीय कहते
हैं, का प्रयोग किया जाता है। तब कबीरी भजन का बनता है संगीत। कबीर जैसे
निरक्षर संत जिनको गायकी पक्ष का कोई ज्ञान नहीं था उनके शबद, साखी और
रमैनी को गा पाना सिर्फ इन्हीं अनपढ़ मजदूर किसानों के बस का है। मालवा,
छत्तीसगढ़, बिहार, पूर्वाचल, झारखंड, गुजरात में जो कबीरी भजन गाये जाते
हैं, उनमें बुंदेलखंड की सैली काफी क्लिष्ट है और दुलर्भ है। क्योंकि गांव
का यह गायक नहीं जानता कि यह भीम पलासी में गा रहा है या माड़ गा रहा है।
कबीरी गायन की एक प्रतिभा है कपिल, जो 12 साल का है, उमरी गांव के रहने
वाले इस बालक ने घोर गरीबी और मुफलिसी के बाद भी विधा को आगे बढ़ाया है।
वह अपने घर की कबीरी गायन सैली की पांचवीं पीढ़ी में है। कक्षा 7 में
पढ़ता है। अगर कबीरी भजन के इस गायक को प्रोत्साहन न मिला तो ग्यान्गा की
तरह यह भी गायब हो जायेगा। कपिल के पिता नोयडा में मजदूरी करते हैं। इसके
बाबा बरदानी शाह ने पांच वर्ष की उम्र से सिखाना शुरू किया था, जोकि
अवधूती शबद के धुरंधर विद्वान हैं। इतनी छोटी उम्र में झांसी और चित्रकूट
महोत्सव के बड़े मंचों पर वह अपनी प्रस्तुती का लोहा मनवा चुका है।