झांसी। राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान
केन्द्र के निदेशक डा. एसके ध्यानी के अनुसार सामान्य से आधी वर्षा होने
पर भी उचित जल संरक्षण के द्वारा पानी की उपलब्धता वर्ष पर्यन्त सुनिश्चित
की जा सकती है। उन्होंने बताया कि गढ़कुण्डार-डाबर मॉडल को अपना कर कृषि
उत्पादन को स्थिर व कृषि वानिकी से कुल उत्पादन बढ़ा कर पलायन की समस्या
को रोका जा सकता है।
गढ़कुण्डार परियोजना के नोडल अधिकारी डा. आरके तिवारी का विचार है कि
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन व कृषिवानिकी
द्वारा बुन्देलखण्ड को विषम एवं अस्थिर जलवायु दशा में भी हरा-भरा रखा जा
सकता है। गौरतलब है कि सूखे से निपटने के लिए एनआरसीएएफ ने निवाड़ी तहसील
स्थित गढ़कुण्डार-डाबर में नवम्बर 05 से जल समेट परियोजना पर कार्य शुरू
किया था। इसके परिणाम उत्साहबर्द्धक रहे।
बताया गया कि जल समेट में मई 06 में 105 कुएं सूखे थे और 2 में औसतन
0.69 मी जल स्तर था। वर्ष 07 में जल स्तर और गिर गया और दोनों कुओं में
0.37 मी औसत पानी बचा था। वर्ष 07 में जल समेट क्षेत्र में 150 गैवियन, 8
चेकडैम, 2 खडिन व 40 हेक्टेयर भूमि का बन्धीकरण एवं कृषि वानिकी पद्धतियों
का विकास किया गया। इससे जल समेट से एक भी बूंद पानी बह कर नहीं जाने
पाया।
इस स्थिति से मई 08 में सूखे कुओं की संख्या घट कर 51 रह गई और कुओं
का सामान्य जल स्तर बढ़ कर औसतन 1.80 मीटर हो गया। इस वर्ष सामान्य से 31
प्रतिशत अधिक वर्षा हो गई, किन्तु गर्मी आते-आते फिर से कुओं का पानी
सूखने लगा। वर्ष 09 में वर्षा औसत से कम होने से क्षेत्र में चारों तरफ
पानी के लिए हाहाकार मच गया, किन्तु जल समेट में किसानों ने पूरे कृषि
क्षेत्र में गेहू की बुआई की और नवम्बर तक दो पानी भी दिया। इसके बावजूद
नवम्बर के अन्तिम सप्ताह में 105 कुएं पानी से भरे थे और मात्र 2 ही सूखे
थे।