चित्रकूट। एक दो नही बल्कि तीन -तीन बार शासन ने मंदाकिनी को बचाने के
बाद छला और आज भी यही काम लगातार जारी है। अधिकारियों के पास बताने के
लिये आंकड़े तो हैं पर जनता का दुख-दर्द इस विकास के धीमे -धीमें चलते काम
के सामने कुछ भी नही है। कभी बच्चे गिरकर घायल हुये तो कभी जानवर तो कभी
इस गंदगी की चपेट में आया लोगों का स्वास्थ्य पर विभाग नही चेता तो नही
चेता। जी हां, बात हो रही है धर्म की नगरी पर वर्षो से रेंग-रेंग कर चल रही
चित्रकूट सीवरेज योजना का। भले ही जनता जितना भी कराहे और समाजसेवी जितना
भी हल्ला मचायें। धरना व प्रदर्शन से बेअसर जल निगम की यह योजना पिछले
पन्द्रह सालों से रेगती ही दिखाई दे रही है। दो बार तो सीएनडीएस कानपुर
इकाई ने यहां पर काम किया। इस विभाग ने काम तो अधूरा छोड़ा ही साथ ही कई
बार लोगों को मारा, घायल किया और गंभीर बीमारियों को उपहार स्वरुप दिया।
फिर बीच में अधूरा काम छोड़कर भाग निकली। पिछले साल की शुरुआत में काम जल
निगम अस्थायी खंड को काम दिया गया। इसका भी हाल काफी बुरा है। एक साल से
काम चलने पर कुल 1800 मीटर पाइप भी नही डाला गया। हर महीने होने वाली
अमावश्या पर आने वाली भीड़ के मद्देनजर जिलाधिकारियों के काम में तेजी लाने
वाले आदेश भी इस काम को करने वाले ठेकेदारों व अधिकारियों पर बेअसर साबित
हो रहे हैं।
मंदाकिनी शुद्धि आंदोलन से जुड़े अरुण गुप्ता कहते हैं कि पता नही कब
सीतापुर को इस सीवरेज योजना से छुटकारा मिलेगा। बच्चे और जानवरों को अपना
ग्रास बनाने वाली योजना को पूरा होने में अभी कितनी पंचवर्षीय योजनायें लग
जायेगी अधिकारियों के इस बात का जवाब नही है।
बाबा सिया राम दास कहते हैं कि अधिकारियों की नियत ही काम को पूरा करने
की दिखाई नही देती। मंदाकिनी के प्रदूषण के लिये जहां मध्य प्रदेश की
सरकार काफी गंभीर दिखाई देती है उत्तर प्रदेश की सरकार को बुतों और हाथियों
से ही फुरसत नही मिल रही है। राज्य सरकार के मंत्री भी घोषणा तो कर देते
हैं पर पैसा नही देते। कहा कि दो साल पहले नगर विकास मंत्री ने मंदाकिनी की
सफाई के लिये अठारह लाख रुपये देने की बात कही थी। सीएनडीएस की बांदा इकाई
ने लाख डेढ़ लाख का काम भी कराया था पर विभाग का कहना है कि उन्हें एक
रुपया नही मिला। ऐसे में कैसे मंदाकिनी साफ होगी।