चित्रकूट। मध्य प्रदेश के हिस्से वाले चित्रकूट को जहां शासन ने
पवित्र नगरी घोषित कर इसे सुन्दर बनाने की जोर आजमाइश जारी कर रखी है वहीं
मंदाकिनी नदी को लेकर विशेष चिंता भी की है। राज्य सरकार के निर्देश पर
कमिश्नर ने खुद ही सभी आम और खास को पिछले दिनों बुलाकर बैठक में साफ तौर
कहा था कि मंदाकिनी की सफाई प्रमुख काम है। अगले हफ्ते से नदी में सफाई का
काम सरकारी स्तर पर जिला प्रशासन प्रारंभ कर देगा। इसमें नगर पंचायत की
सक्रिय भूमिका रहेगी, पर वास्तव में तस्वीर के रंग इससे बिलकुल उलट हैं।
नगर पंचायत के अध्यक्ष नीलांशु चतुर्वेदी कहते हैं कि शासन की पहल तो
काफी अच्छी है। डिजायर ग्रुप के बैनर तले उन्होंने मंदाकिनी की सफाई का काम
काफी किया। मंदाकिनी शुद्धि आंदोलन में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया पर अभी
कमिश्नर के आदेश के तीन दिन बीत जाने के बाद जिला प्रशासन ने उन्हें बताया
ही नही कि वास्तव में वे नदी की सफाई कैसे करेंगे और नगर पंचायत की उसमें
भूमिका क्या होगी?
उन्होंने कहा कि मंदाकिनी की सफाई का संकल्प तो उन्होंने तब लिया था जब
वे ग्रामोदय विवि के छात्र थे। डिजायर ग्रुप का जन्म भी इसी संकल्पना के
आधार पर हुआ था। चित्रकूट के विकास के लिये वे हमेशा सरकार के साथ हैं। कहा
कि अगर जिला प्रशासन के लोग उन्हें अवगत करा दें कि उनकी भूमिका इस काम
में क्या है तो काम करने में काफी आसानी हो जायेगी। बताया कि नक्शे के
हिसाब से उतारा बाजार तक का पानी मध्य प्रदेश के हिस्से में आता है। पर्यटक
उप्र में आये या मध्य प्रदेश में वह आता तो चित्रकूट ही है और राम घाट में
खड़े होकर जब दूसरी तरफ निगाह डालता है तो उसे हर तरफ का पानी कंचन जैसा
चमकता दिखाई देना चाहिये।
इस मामले पर महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति
प्रो. ज्ञानेन्द्र सिंह काफी आहत हैं। उनका कहना है कि चित्रकूट की विशेष
पहचान मंदाकिनी को हम खुद ही मिटाने पर तुले हुये हैं। पालीथिन का प्रयोग
किसी भी कीमत में यहां पर बंद होना चाहिये और नदी की सफाई की जिम्मेदारी जब
सब लेंगे और यह आदत में शुमार हो जायेगा तभी उसका भला होगा।