छतरपुर (रवीन्द्र व्यास)। बुंदेलखंड में पंचायत चुनाव के बाद इन दिनों यदि किसी
की चर्चा सबसे ज्यादा है तो वो है भैया राजा। अपने गुनाहों के कारण भैया राजा इन
दिनों चर्चाओं के केंद्र में हैं।
अपनी ही नातिन वसुंधरा की हत्या के षड्यंत्र के आरोप में जेल में बंद भैया राजा
पर ये एक ऐसा कलंक लगा है जो उनके द्वारा किये गए तमाम अपराधों पर भारी पड़ा। इस
मुश्किल से वे निजात पाते कि उनके एक और पाप की फाइल खुल गई।
उन्होने अपने साथियों की मदद से साटा [पन्ना] गाँव से १३ साल पहले विवाहिता
तिज्जी बाई का अपहरण कराया था। उसे बंधक बना कर रखा। 21 मई 2007 को उसने आग लगा कर
भोपाल में आत्महत्या कर ली थी। उनके इस पाप में उनकी पहली पत्नी विधायक आशा रानी की
भी सहभागिता बताई जाती है।
भोपाल पुलिस ने उनके खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस विधायक जी की तलाश
में घूम रही है और वे बीजेपी के आला नेताओं से मदद की गुहार लगा रही हैं। पुलिस
भैया राजा की दूसरी पत्नी की भी ऐसे किसी आपराधिक मामले में भूमिका तलाशने में जुटी
है।
अशोक वीर विक्रम सिंह उर्फ़ भैया राजा ने अपनी राजनीति का मुकाम अपराध से पाया
है। दिसंबर 1950 में जन्मे भैया राजा ने अपराध की दुनिया में 1968 से ही कदम रख
दिया था। उनके बडे भाई इंद्र विक्रम सिंह मध्य प्रदेश पुलिस में डी.आई.जी. थे। जिस
कारण पुलिस में उनका खासा रुतबा था।
पुलिस ने उनके छोटे-मोटे अपराधों को हमेशा अनदेखा किया। इसके बावजूद जब अपराध और
उनके अत्याचार बढ़े तो छतरपुर कलेक्टर ने 1970 में पहली बार उनके खिलाफ
प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की। उनपर 1972 में दो बार और 1987 में एक बार फिर
प्रतिबंधात्मक कार्यवाही हुई तथा 1989 में रासुका के तहत गिरफ्तार किया गया।
छतरपुर पुलिस ने हाई कोर्ट में कहा था कि विक्रम सिंह के आतंक के चलते कई गंभीर
अपराध दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। उन पर दर्ज आपराधिक मामलों की बात करें तो ऐसा कोई
अपराध नहीं है जो उनपर दर्ज ना हुआ हो। अपहरण, हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार,
लूट, डकैती और पुलिस की पिटाई तक के मामले दर्ज हो चुके है।
भैया राजा पर अपनी ही मोसी के दो लड़कों के अपहरण व हत्या का भी अपराध महाराजपुर
थाने में दर्ज हो चुका है। 1982 में अपराध क्रमांक 110/82 धारा – 364, 302, 201
ता.हि. के तहत ये मामला दर्ज हुआ था।
1986 में छतरपुर सिविल लाइन पुलिस थाने में अप.क्र.21/86 धारा 353,293,506 b. के
तहत एस.डी.ओ. पुलिस के साथ मारपीट का मामला दर्ज हुआ। 1989 में किच्छा नैनीताल में
अप.क्र,67/89 धारा 302, 307, 201 के तहत तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह के
भतीजे सिदार्थ राव सांगा की हत्या का मामला दर्ज हुआ। गंभीर अपराध करने के बावजूद
वो कानून की कमियों का फायदा उठाकर हमेशा बचता रहा।
सियासत में कांग्रेस के नजदीकी रहने वाले भैया राजा को जब १९९० में टिकिट नहीं
मिला तो उन्होंने पवई [पन्ना जिला] विधानसभा सीट से जेल में रहकर निर्दलीय चुनाव
लड़ा और जीत गए। 1995-96 में इसी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव
जीता। पन्ना कापरेटिव बैंक पर वर्षों से अपना बर्चस्व बनाये रखने वाले भैया राजा ने
समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था।
बड़ा मलहरा के उप चुनाव में भाजपा हर कीमत पर उमा भारती की पार्टी जनशक्ति को
शिकस्त देना चाहती थी। जिसके चलते मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भैया राजा से
हाथ मिलाया था। इसके एवज में प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भैया राजा की पहली पत्नी
आशा रानी को बिजावर विधानसभा से पार्टी का टिकट दिया गया।
इस तरह भाजपा ने अपराधियों को टिकिट देने के कलंक से मुक्ति तो पा ली किन्तु अब
उनके कर्मों से मिल रहे कलंक से मुक्ति का मार्ग शायद भाजपा को नहीं सूझ रहा है।
भैया राजा जेल में हैं पुलिस उनकी विधायक पत्नी वा उनके साथी नर्मदा प्रसाद, गोपाल
सिंह, कन्हैया लाल दुबे, मिजाजी रैकवार, भोंरी वा ख्वाजा की तलाश में जुटी है।
आजादी के बाद से ही बुंदेलखंड के छतरपुर, पन्ना और आसपास के जिलों में सामंतवाद
चरम पर रहा है। गाँव-गाँव में सामंतवाद के बल पर सियासत का नीति निर्धारण होता रहा
है। ठाकुर को राजा और पंडित को महाराज का रुतबा मिलता रहा है।