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8:46 PM
किसानों को रुला कर लौटा ठण्ड और कोहरे का कहर
ललितपुर। पिछले दिनों छाये रहे कुहरे और
कड़कड़ाती सर्दी ने अब धीरे-धीरे लौटना प्रारम्भ कर दिया है, किन्तु उसके
कहर के असर अब स्पष्ट दिखाई देने लगे है। महावट वर्षा के बाद प्रारम्भ हुआ
घना कोहरा और हाड़ कंपाती ठण्ड का प्रभाव लगभग एक पखवाडे़ तक क्षेत्र में
बना रहा। अन्तिम दिन कोहरा छटने के बाद तो दो दिन तक इतनी कड़ाके की सर्दी
पड़ी कि लोगों और जानवरों तक की दिनचर्या रुक-सी गयी। अब कुछ समय इन दोनों
स्थितियों से साफ हुआ तो फसलों पर इससे पडे़ इसके विपरीत प्रभाव दिख रहे
है। सबसे अधिक नुकसान मटर की फसल को है और फिर मसूर एवं चना जैसी दलहनी
फसलें इससे प्रभावित हुयीं हैं। मटर में जहा फलिया उतरने लगीं थी उन
फलियों के दाने पूरी तरह से पिचक गये है और उसकी जगह उसमें सड़न जैसा तरल
पदार्थ निकलता है, जिन पर केवल अभी फूल ही आ रहे थे तो उनके फूल मारे गये
है, उनमें अब फूलों का पुन: आना और फलियों का बनना लगभग असम्भव ही है। कुछ
किस्मत वाले किसान ही ऐसे होंगे, जिन्हे मटर उत्पादन का कुछ भाग मिल सके।
कोहरा की धुन्ध के कारण मसूर और चनों के फूल भी सूख गये है, जिससे उनमें
फल नहीं आ पाये। इनके निचले भागों में जो फल आ भी गये थे, वे तुसार से
सुकुड़ गये है ऐसे में इसका अनुमानित उत्पादन 50 प्रतिशत से कम ही हो
पायेगा।
महावट की वर्षा पा कर किसान फूला नहीं समा रहा था, परन्तु अब खेतों पर
जाकर फसल देखने से उसकी आखों में आसू और चहरों पर मायूसियत उभर आती है। अब
किसानों को केवल गेहूं की किस्मों वाली फसल से ही आशा है। उसके पकने और
आने में अभी बहुत देर है। यदि यह कोहरा और जानलेवा ठण्ड न आयी होती तो मटर
और बटरी की फसलें तो अभी तक पकने के कगार पर आ गयीं होतीं। अब कोहरा और
कड़ाके की ठण्ड तो नहीं है किन्तु पिछले दों दिनों से आसमान में बादलों के
टुकड़े फिर दिखाई देने लगे है जिन्हे देख कर किसानों का दिल कांपने लगा है
क्योंकि कहा नहीं जा सकता कि प्रकृति क्या खेल खेल दे। किसान को अब केवल
भगवान का भरोसा है।